
राजस्थान के झालावाड़ जिले के मनोहर थाना इलाके में एक सरकारी स्कूल की छत गिरने से सात मासूम बच्चों की जान चली गई। प्रशासन हरकत में आया, कैमरे चालू हुए, और बयान चालू हुए उससे भी ज़्यादा तेज़ी से।
“हमने तो आदेश दिया था, किसी ने पालन नहीं किया!”
ज़िला कलेक्टर अजय सिंह साहब ने प्रेस को बताया कि 20 जून को ही साफ़-साफ़ आदेश दे दिए गए थे कि “जर्जर भवनों में कक्षाएं न चलें” — मतलब छत अगर ऊपर लटक रही है, तो बच्चों को नीचे मत बैठाओ।
लेकिन अफ़सोस, इस स्कूल से “कोई सूचना नहीं आई” — अब सूचना आती कैसे? स्कूल शायद आदेशों को डाक से आने वाली चिट्ठी समझ बैठे!
“12 भवन शिफ्ट हुए, ये 13वां बदकिस्मत था”
कलेक्टर साहब का दावा है कि 12-13 भवन पहले ही शिफ्ट कर दिए गए थे। लेकिन जो छत गिरी, वो शायद लकी 13 नहीं थी।
असली सवाल: क्या छत को शिफ्ट किया गया या ज़िम्मेदारी?
टीचर्स से पूछा, उन्हें कुछ नहीं पता था
पूछताछ में शिक्षक बोले: “हमें तो कुछ नहीं पता, हम तो बच्चों को पढ़ा रहे थे।”
आलम यह है कि सूचना तंत्र की ग़लती पर अब मासूम जानें चली गईं, और हर हाथ खड़ा है, जैसे ओटीटी ड्रामा में “मैंने कुछ नहीं किया” वाला सीन।
दो मांगें: इंसाफ और सुरक्षित भविष्य
मृत बच्चों के परिजनों ने प्रशासन के सामने दो मांगें रखीं:
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ऐसा हादसा दोबारा न हो
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दोषियों पर कड़ी कार्रवाई हो
सवाल वही पुराना: क्या जांच रिपोर्ट के आने तक लोगों की याददाश्त भी ‘शिफ्ट’ हो जाएगी?
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